ज्ञान प्रभाकर तेजस्वी लखि, जग ने जिसे सराह।
निर्मल सरिता राजनीति में, अहोरात्रि अवगाह।। 1 ।।
सदा विपक्षी जन पर जिसने, साहस अमित दिखाया।
भारत माता की सेवा में, जिसने समय बिताया।। 2 ।।
ज्ञान शक्ति सौभाग्य प्रदायिनि, जै जै भारत माता।
करत वंदना मातृ भूमि की, अतुलित शक्ति प्रदाता।। 3 ।।
प्रगट भई श्री नेहरू कुल में, भारत धन्य कहायो।
विद्या वारिधि पुनि प्रबुद्ध लखि, जन समाज सुख पायो।। 4 ।।
कर्णधार प्रधान मंत्री भारत भर ने माना।
विजय विधायिनि जय सुखदायिनि, हरजन ने पहचाना।। 5 ।।
पर हाय अचानक एक अशांति की, व्यथा जगत में छाया।
नियति नटी की क्रूर चक्र ने निर्मम रूप दिखाया।। 6 ।।
हरी-भरी उपवन में आकर, के तुषार बरषाया।
एक ज्योति बुझ गई जगत से, प्रबल अदृष्टि की माया।। 7 ।।
गई स्वर्ग को अदिति नंदिनी, हर जनता अकुलाई।
नहिं रोके से रूका नयन में, अश्रु बिंदु भर आई।। 8 ।।
जीवित जब तक रही इंदिरा, जीने का फल पाए।
मर कर हो गई अमर इंदिरा, सुयश विश्व में छाए।। 9 ।।
ज्ञान शक्ति में रही ब्राह्मणी, साहस में क्षत्राणी थी।
सिंह वाहिनी दुर्गा थी वह, मनुज नहीं अवतारी थी।। 10 ।।
भारत के हर जनता की, अरमान इंदिरा गांधी थी।
प्रिय राष्ट्र बांसुरी की सुंदर, मृदुतान इंदिरा गांधी थी।। 11 ।।
गई इंदिरा अमर लोक पर, नाम अमर हो जाएगा।
क्रूर काल का वक्र चक्र, उसको न जीर्ण कर पाएगा।। 12 ।।
उस देवी की रही भावना, हर जन की सेवा करना।
देश जाति की सेवा में, जीवन भी जाए तो भय ना।। 13 ।।
क्रूर कर्म मिट जाय जगत से, दंभ कपट का नाम न हो।
जड़ता की जड़ जमें नहीं, या छल प्रपंच से काम न हो।। 14 ।।
शांति देश में सदा रहे, उन्नति की होय विराम नहीं।
हर नर ऋजु पंथ को अपनाएँ, हो योग्य पुरुष की मान सही।। 15 ।।
सविता सम तेजस्वी महिला, शोणित देकर अमर भई।
उमड़ रही थी रग रग में, निज देश भक्ति की रूप नई।। 16 ।।
सिरनाम देश की जनता इस, दुख मय ज्वाला से सहम उठे।
ज्यों शांति सरोवर में तूफान से, निर्मल जल में लहर उठे।। 17 ।।
सेनानायक श्री बोउतर्स भी, दुखमय घटना में भाग लिए।
अविलंब पहुँच कर भारत में, श्रद्धांजलि दे दुख प्रगट किए।। 18 ।।
अर्थ इंदिरा की लक्ष्मी, वह निश्चय लक्ष्मी माता थी।
कर्णधार वह देवी थी, भारत की भाग्य विधाता थी।। 19 ।।